Raksha Bandhan : भाई-बहनों के अटूट प्रेम का त्योहार रक्षाबंधन 22 अगस्त यानी आज मनाया जा रहा है। ये त्योहार हर साल सावन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस पावन दिन बहन भाई को राखी बांधती है और भाई बहन को उपहार देता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुभ मुहूर्त में राखी बांधन का बहुत अधिक महत्व होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भद्रा के समय राखी नहीं बांधनी चाहिए। राखी ( Raksha Bandhan ) के दिन भद्रा का खासा ध्यान रखा जाता है। लेकिन इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का साया नहीं रहेगा। हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार सबसे पहले देवी लक्ष्मी ने राजा बली को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया था।
सावन पूर्णिमा को यह त्योहार देश-विदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। बाजारों में बहनें भाइयों के लिये राखी की खरीदारी करती दिख रही हैं। श्रावण पूर्णिमा होने पर लोग घरों में इस दिन विशेष पूजा अर्चना करते हैं। बहनें भाई की आरती उतारती हैं और भाई आजीवन बहन की रक्षा का संकल्प लेते हैं। पूर्णिमा शाम 5:09 बजे तक है।
Raksha Bandhan पर राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भद्रा वह अशुभ काल माना जाता है जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। आचार्यों ने बताया कि, इस बार सावन पूर्णिमा के दिन भद्रा नहीं है। दिनभर बहनें भाई को राखी बांध सकती हैं। वहीं राखी बांधने का मुहूर्त तो दिनभर है, लेकिन स्थिर लग्न में राखी बांधना और भी शुभ रहता है।
22 अगस्त को राखी बांधने के खास मुहूर्त
-प्रातः 6:15 बजे से 7:51 तक सिंह (स्थिर लग्न)
-मध्यान्ह 12:00 बजे से 14:45 तक वृश्चिक (स्थिर लग्न)
-शाम 18:31 बजे से 19:59 बजे तक कुंभ ( स्थिर लग्न)।
राखी बांधते समय पढ़ें ये मंत्र
‘ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’
रखें इस बात का ध्यान
राखी खरीदते या बांधते समय कुछ खास बातें ध्यान में रखनी जरूरी हैं। जाने-अनजाने में बाजार से राखियां लाने में टूट जाती हैं और हम उसे वापस जोड़कर सही कर लेते हैं। अगर कोई राखी खंडित हो जाए तो उसका प्रयोग भाई की कलाई पर नहीं करना चाहिए।
देवताओं को भी बांधी जाती है राखी
हिंदू धर्म में देवताओं को भी राखी बांधने की परंपरा है। मान्यता है कि देवताओं को राखी बांधने से भगवान उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। रक्षा बंधन के दिन भगवान गणेश को लाल रंग की राखी बांधनी चाहिए। क्योंकि श्री गणेश जी को लाल रंग पसंद है। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन के सभी कष्ट और संकट दूर हो जाते हैं तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है।
रक्षा बंधन का त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। चूंकि सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और पूर्णिमा इस माह का अंतिम दिन है। इसलिए इस दिन भगवान शिव को राखी बांधने से वे बहुत प्रसन्न होते है और उनकी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं।
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन मनाने के पीछे कथाएं
लक्ष्मी-राजा बलि की कथा
कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा। दानवीर बलि इसके लिए सहज राजी हो गया। वामन ने पहले ही पग में धरती नाप ली तो बलि समझ गया कि ये वामन स्वयं भगवान विष्णु ही हैं। बलि ने विनय से भगवान विष्णु को प्रणाम किया और अगला पग रखने के लिए अपने शीश को प्रस्तुत किया। विष्णु भगवान बलि पर प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। असुर राज बलि ने वरदान में उनसे अपने द्वार पर ही खड़े रहने का वर मांग लिया। इस प्रकार भगवान विष्णु अपने ही वरदान में फंस गए। तब माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह पर असुर राज बलि को राखी बांधी और उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया।
द्रौपदी- श्रीकृष्ण की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत में शिशुपाल के साथ युद्ध के दौरान श्री कृष्ण जी की तर्जनी उंगली कट गई थी। यह देखते ही द्रोपदी कृष्ण जी के पास दौड़कर पहुंची और अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी। इस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। इसके बदले में कृष्ण जी ने चीर हरण के समय द्रोपदी की रक्षा की थी।
भविष्य पुराण की कथा
भविष्य पुराण के अनुसार सालों से असुरों के राजा बलि के साथ इंद्र देव का युद्ध चल रहा था। इसका समाधान मांगने इंद्र की पत्नी सची विष्णु जी के पास गई, तब विष्णु जी ने उन्हें एक धागा अपने पति इंद्र की कलाई पर बांधने के लिए दिया। सची के ऐसा करते ही इंद्र देव सालों से चल रहे युद्ध को जीत गए। इसलिए ही पुराने समय में भी युद्ध में जाने से पहले राजा-सैनिकों की पत्नियां और बहने उन्हें रक्षा सूत्र बांधा करती थी, जिससे वो सकुशल जीत कर लौट आएं।