चमोली: यूँ तो उत्तराखंड के पहाड़ो में लोग प्रकृति का आनंद उठाने आते हैं, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ो में जो दर्द छुपा है उसे कोई देख नहीं पाता है। उत्तराखंड में कई सरकारें आईं और बड़े-बड़े वादे करके गईं। मगर इन वादों के पीछे का सच क्या है, यह हम सब जानते हैं। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की हालत क्या है, यह भी हम सबको पता है। उत्तराखंड राज्य का सत्ता सुख भोगने वाले ये दल इन पहाड़ों का कितना विकास कर सके हैं? इसकी एक बानगी हमें देखने को मिली चमोली जिले में जोशीमठ के रिंगी गांव में.. जहां आजादी के 70 साल बाद भी कई गांव ऐसे हैं जहां ग्रामीण आज भी मूलभूत जरूरतों के बिना पुराने ढर्रे में जीवन व्यापन करने को मजबूर हैं।
मामला तपोवन-भविष्य बद्री सड़क निर्माण का है। जहाँ ग्रामीणों के लम्बे संघर्ष के बाद 2001 में निर्माण कार्य शुरू तो हुआ, लेकिन करीब 20 साल बाद आज भी यह सड़क पूरी नहीं हो सकी। करीब 14 किमी० इस सड़क निर्माण के लिए तीन-तीन बार बाकायदा शिल्यानाश हुआ, लेकिन आज भी इस सड़क का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है।
प्रधान संगठन जोशीमठ के महामंत्री और रिंगी के ग्राम प्रधान विनोद नेगी का कहना है कि 2001 में तत्कालीन सड़क परिवहन मंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने इस सड़क का शिलान्यास करवाया। उसके बाद फिर विधायक केदार सिंह फोनिया ने भी दोबारा इस सड़क का शिलान्यास करवाया और सड़क निर्माण की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी डिपार्टमेंट को सौंपा गया। सुस्त चाल से चल रहे इस सड़क निर्माण को लेकर 2018 में ग्रामीणों ने कार्य में तेजी लाने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया। विशाल जनाक्रोश को देखते हुए विधायक महेंद्र और बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल के आश्वासन पर धरना प्रदर्शन समाप्त। 11 जून 2020 को फिर सड़क का उद्घाटन किया गया और इस सड़क को बनाने की जिम्मेदारी PMGSY डिपार्टमेंट को सौंपी गई।
अब भी आधे रास्ते से ही निर्माण कार्य किया गया, लेकिन PMGSY 4 जून को यहां कार्य अधूरा छोड़कर दूसरी साइट पर चले गए। वहीं PMGSY की लापरवाही के चलते विस्फोटों से गांव के कई घरों में दरार पड़ी हैं। कई लोगों के फलदार पेड़ क्षतिग्रस्त हो गये हैं। यही नहीं निर्माण कार्य के दौरान कोई डम्पिंग जोन ना होने के कारण मलबा भी जगह-जगह दाल दिया गया है।
विनोद नेगी का कहना है कि इस दौरान ब्लास्ट से गांव के 15 से 20 लाख की संपत्ति पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गई है, जिसमें करीब 300 मीटर नहर, 600 मीटर पक्की दीवार, रास्ता, पानी टैंक, प्रतीक्षालय आदि शामिल हैं। साथ ही जगह-जगह मलबा आने से ग्रामीणों को खतरा बना हुआ है। उनका आरोप है कि, आला अधिकारी भी बताने के लिए तैयार नहीं है कि अभी तक कितना कार्य हुआ है और कितना भुगतान हो चुका है।
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