उत्तरकाशी: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में क्वारेन्टीन हुए प्रवासी टीकाराम सिंह ने बेहतरीन पहल की है। उन्होंने अपने 14 दिन के क्वारेन्टीन पीरियड में ऐसा काम किया है, जिससे पर्यावरण संवरने के साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में बड़ी समस्या बन चुके जंगली जानवरों से भी निजात मिल सकती है। उन्होंने यहां करीब दस हजार से भी ज्यादा ‘बीज बम’ तैयार किये हैं।
लॉकडाउन से उपजे हालात से लौटे उत्तराखंड
कोरोना महामारी के प्रकोप से पूरी दुनिया त्रस्त है। इस बीच भारत मे जब पहला लॉकडाउन हुआ तो अफरा-तफरी भरा माहौल उत्पन हुआ। सब इंडस्ट्री, होटल, व्यवसाय भी ठप्प हुआ। उत्तराखण्ड से भी बहुत सारे प्रवासी लोग विभिन्न राज्यों मे फंस गए और सारे लोग जहां थे वहीं दो- महीने फंसे रहे। इनमे टीकाराम सिंह भी शामिल थे। बैंगलोर मे 5 सितारा होटल मे बतौर सेफ काम करते थे। उनका होटल बंद होने के चलते वो भी उत्तराखंड लौटे।
कई प्रवासियों की मदद की
टीकाराम सिंह जब घर आने के लिए फ्लाइट की टिकट बुक की तो उनकी 2 फ्लाइट कैंसिल हो गयी। फिर सरकार द्वारा नयी गाइड लाइन जारी होने पर उन्होंने उत्तराखंड वापस आने के लिए पंजीकरण करवाया। साथ ही अन्य सैकड़ों लोगों का भी पंजीकरण किया। साथ ही कई लोगों को टेलीफोनिक माध्यम से भी श्रमिक ट्रैन के बारे मे परामर्श दिया, जिससे कई प्रवासियों की उत्तराखंड वापसी हुई।
क्वारेन्टीन में शुरू किया ‘बीज बम अभियान’
12 मई क़ो वह श्रमिक ट्रैन में बैंगलोर से हरिद्वार आए। यहां से उत्तराखण्ड परिवहन की बस से उत्तरकाशी फिर वहां से अपने गावं सरकारी गाड़ी से आए। अपने गांव पहुंच कर वह प्राथमिक विद्यालय दुग्डु ठाण्डी, डुण्डा ब्लॉक में क्वारेन्टीन हो गए। स्कूल मे कुछ सुविधा तो थी नही खाना-पीना सब घर से आया। प्रदेश के क्वारेन्टीन सेंटरों में अक्सर अव्यवस्थाओं की शिकायतें लोग कर रहे हैं।
वहीं इस मुश्किल की घड़ी मे उन्होंने बेहतरीन पहल शुरू की। 14 दिन के क्वारेन्टीन पीरियड का सद्पयोग कर स्कूल मे वृक्ष लगाए और ‘बीज बम अभियान’ शुरू किया। इस मुहिम के तहत उन्होंने दस हज़ार से भी ज्यादा बीज बम तैयार कर दिये।
क्या है ‘बीज बम’
उन्होंने कहा कि, बीज बम के कई फायदे हैं। जापान और मिश्र जैसे देशों में यह तकनीकी ‘सीड बॉल’ के नाम से सदियों पहले से परंपरागत रूप से चली आ रही है। इसे ‘बीज बम’ नाम इसलिए दिया गया है, ताकि इस तरह के नाम से लोग आकर्षित हों और इस बारे में जानने का प्रयास करें। इसमें मिट्टी और गोबर को पानी के साथ मिलाकर एक गोला बनाया और स्थानीय जलवायु और मौसम के अनुसार उस गोले में कुछ बीज डाल दिये। इस बम को जंगल में कहीं भी अनुकूल स्थान पर छोड़ दिया जाता है।
‘बीज बम अभियान’ का लक्ष्य
उन्होंने बताया कि, इसके पीछे लक्ष्य बंदर, लंगूर और सूअर जैसे वन्य जीव हैं, जो पहाड़ों में खेती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। इन जानवरों को जंगलों में ही मौसमी सब्जियां आदि मिल जाएं तो वे रिहायशी इलाकों में नहीं आएंगे। दीर्घकाल के लिए भालू, गुलदार और टाइगर जैसे हिंसक जानवर भी हमारा लक्ष्य हैं। इसमें एक भी रुपया खर्च नहीं होता है, क्योंकि सभी चीजें घर में मिल जाती हैं। इसके कई फायदे हैं। बताया कि, इससे जंगल में हरियाली भी बढ़ेगी, साथ ही जंगली जानवरों को जंगल में ही भोजन मिल पायेगा। जिससे उन्हें भोजन की तलाश में आबादी की ओर नहीं आना पड़ेगा।
द्वारिका प्रसाद सेमवाल बने प्रेरणा व हिम्मत सिंह रावत सहयोगी
इस मुहिम में हिम्मत सिंह रावत, सदस्या एकता सामाजिक परिवार उनका सहयोग कर रहे हैं। इसके प्रेरणा श्रोत वह द्वारिका प्रसाद सेमवाल, जाडी संस्थान को मानते हैं। जिन्होने बीज बम की शुरुआत राजकीय इंटर कॉलेज कमद उत्तरकाशी से की। जो काफी कारगर साबित हुई और जिसकी प्रदेशभर मे काफी सराहना हुई। ये देश के किसी भी क्वारेन्टीन सेंटर की पहला प्रयोग है और खाली समय का सही उपयोग है। वह उत्तराखण्ड के पहाड़ी खाद्य पदार्थों पर भी काम कर रहे हैं। पहाड़ी खाने क़ो नये रूप मे ढालना उनका सपना है। वह पहाड़ी फ्यूजन फूड क़ो बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होने मसूरी मे भी विंटर लाइन कार्निवाल में पहाड़ी फ्यूजन का स्टाल लगाया था, जो सैलानियों द्वारा भी खूब सराहा गया। इनमे झन्गोरा, बुरांस की फ़ीरनी और भन्ग्जीर राजमा की गलौटि कबाब काफी पसंद किया गया था।
ये भी पढें: मंत्री सतपाल महाराज की पत्नी कोरोना पॉजिटिव, कैबिनेट बैठक में शामिल हुए सतपाल महाराज