देहरादून: मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तीन महीने और 23 दिन के अपने संक्षिप्त कार्यकाल में नेतृत्व क्षमता साबित नहीं कर पाए। यही उन पर भारी पड़ गया। मुख्यमंत्री बनने के बावजूद तीरथ सिंह रावत खुद अपनी सियासी जमीन पुख्ता नहीं कर पाए। वो शुरुआती तीन महीनों में खुद के लिए उपचुनाव लड़ने के लिए विधानसभा सीट तय नहीं कर पाए।
उप चुनाव को लेकर तीरथ सिंह रावत की सारी रणनीति हाईकमान के निर्देश पर टिकी हुई थी। तीरथ के सीएम बनने के समय सल्ट की सीट रिक्त चल रही थी। इसके कुछ दिन बाद गंगोत्री भी रिक्त हो गई। लेकिन दोनों निर्वाचन क्षेत्र अपरिचित होने के कारण तीरथ किसी एक का चयन नहीं कर पाए। देरी के कारण हालात उनके लिए दिन प्रतिदिन विपरीत होते चले गए। जिस कारण उपचुनाव जीत कर राजनैतिक वैद्यता हासिल करने और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए माहौल बनाने का मौका उन्होंने गवां दिया और उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के रूप में सबसे छोटे कार्यकाल का रिकॉर्ड उनके नाम जुड़ गया।
हालांकि अब तीरथ सिंह रावत ने संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए इस्तीफे की बात कही। इस पर पत्रकारों ने जब उनसे सल्ट उपचुनाव में खुद नहीं लड़ने पर सवाल किए तो उन्होंने सल्ट उपचुनाव के समय कोरोना पॉज़िटिव होने के कारण समय नहीं होने का हवाला देते हुए इस पर बात खत्म कर दी। इसके बाद उन्होंने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व का आभार जताते हुए कहा कि, मुझे समय-समय पर विभिन्न दायित्व सौंपे गए।
वहीं इसके अलावा खुद के उपचुनाव की रणनीति को लेकर असमंजस, कुंभ में कोरोना जांच फर्जीवाड़ा, कोविड की दूसरी लहर फूट पड़ने के कारण जनता के लिए नई योजना ला पाना, भाजपा कैडर में जोश ना भर पाने, गाहे-बगाहे बयानबाजी को लेकर विवादों में घिरने की वजह से बनी छवि तीरथ सिंह रावत से मुख्यमंत्री का ताज छीनने का सबब बन गई।