Padma Awards 2021: उत्तराखंड के लिए आज का दिन खास होगा। आज नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में वर्ष 2020 और 2021 के पद्म पुरस्कार वितरित किए जाएंगे। उत्तराखंड की पांच प्रमुख हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से नवाजा जाएगा। आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैस्को प्रमुख पर्यावरणविद डॉ.अनिल प्रकाश जोशी को पद्मभूषण, पर्यावरणविद कल्याण सिंह और डॉ.योगी एरन को पद्श्री सम्मान देकर सम्मानित करेंगे। वहीं मंगलवार को चिकित्सा क्षेत्र में डॉ.भूपेंद्र कुमार सिंह और किसान प्रेम चंद शर्मा को पद्श्री सम्मान देकर सम्मानित करेंगे।
दरअसल कोरोना के चलते वर्ष 2020 में पद्म पुरस्कारों का वितरण नहीं किया जा सका था। इसलिए इस वर्ष दोनों साल के पद्म विजेताओं (Padma Awards 2021) को एक साथ सम्मानित किया जा रहा है।
डॉ. अनिल जोशी
हैस्को के संस्थापक पद्मश्री डॉ.अनिल प्रकाश जोशी को पर्यावरण पारिस्थितिकी और ग्राम्य विकास से जुड़े मुद्दों और नदियों को बचाने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए पद्मभूषण (Padma Awards 2021) से सम्मानित किया जा रहा है। हेस्को के प्रमुख डॉक्टर अनिल जोशी ने पर्यावरण पारिस्थतिकी और ग्राम्य विकास के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया। उन्होंने इस दिशा में काफी काम भी किया।
डॉ.जोशी ने कहा कि, वह इस पुरस्कार को सामाजिक, प्रकृति और पर्यावरण के लिए किए जा रहे सामूहिक प्रयासों को सर्मिपित करते हैं। वह संदेश देना चाहते हैं कि जो कोई हिमालय को किसी भी रूप में भोग रहा है, बदले में हिमालय को कुछ वापस भी करे। डॉ.जोशी हमेशा जल, जंगल, प्राण वायु आदि के बदले सकल पर्यावरण उत्पाद की वकालत करते रहे हैं। इसके अलावा ग्राम्य विकास को आर्थिकी से जोड़ते हुए कई उदाहरण पेश किए हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम वर्ष 2006 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित कर चुके हैं।
पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता अनिल जोशी का जन्म स्थान पौड़ी जनपद के कोटद्वार में हुआ। उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) में हासिल की और डाक्टरेट की उपाधि इकोलॉजी में ली। उन्होंने अपने करियर की शुरूआत 1979 में कोटद्वार डिग्री कॉलेज में बतौर प्राध्यापक की। इसके बाद हेस्को के नाम से एनजीओ बनाया। जोशी ने संस्था के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण और विकास के साथ कृषि क्षेत्र में शोध और अध्ययन किए।
डॉक्टर जोशी ने हिमालयन पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संस्थान (हेस्को) की स्थापना की है। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2006 में पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ। पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें पद्मश्री सम्मान प्रदान किया था। उन्हें जमनालाल बजाज अवॉर्ड भी मिला है। इसके अलावा उन्हें अशोका फेलोशिप, द वीक मैन ऑफ द एयर और आईएससी जवाहर लाल नेहरू अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
कल्याण सिंह रावत
उत्तराखंड के एक चिंतक कल्याण रावत ने मैती आंदोलन के जरिये अनूठी परंपरा को जन्म दिया। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई वर्षों से काम कर रहे कल्याण सिंह रावत ने उत्तराखंड में मैती आंदोलन के जरिये पर्यारण संरक्षण की दिशा में एक अनूठी परंपरा को जन्म दिया। आज कल्याण सिंह रावत के प्रयासों की चर्चा न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी हो रही है
मैती आंदोलन के तहत गांव में जब किसी लड़की की शादी होती है तो विदाई के समय दूल्हा-दुल्हन को एक फलदार पौधा दिया जाता है। वैदिक मंत्रों के के साथ दूल्हा इस पौधे को रोपित करता है और दुल्हन इसे पानी से सींचती है। पेड़ को लगाने के एवज में दूल्हे की ओर से दुल्हन की सहेलियों को कुछ पैसे दिए जाते हैं। जिसका उपयोग पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में और समाज के निर्धन बच्चों के पठन-पाठन में किया जाता है। दुल्हन की सहेलियों को मैती बहन कहा जाता है। जो भविष्य में उस पेड़ की देखभाल करती हैं। पर्यावरण से जुड़े मैती आंदोलन की शुरुआत कल्याण सिंह रावत ने वर्ष 1994 में चमोली जिले के राइंका ग्वालदम में जीव विज्ञान के प्रवक्ता पद पर रहते हुए की थी।
मैती आंदोलन के प्रणेता एवं पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत का जन्म 19 अक्टूबर 1953 को उत्तराखंड में हुआ था। जीव-विज्ञान के अध्यापक के रूप में वे उत्तराखंड में विभिन्न स्थानों पर नियुक्त रहे और स्थानीय लोगों को पर्यावरण संवर्धन और वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया। उनके द्वारा 1994 में शुरू किया गया मैती आंदोलन प्रकृति एवं पेड़ों से भावनात्मक लगाव पर आधारित है तथा पेड़ों को रोपने के साथ उनके संरक्षण पर जोर देता है। उनके द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन आज भारत के 18 राज्यों समेत विश्व के अनेक देशों में अपनी जड़ें जमा चुका है।
डॉ. योगी एरन
उत्तराखंड के डॉ. योगी एरन को चिकित्सा एवं विज्ञान-इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान दिया जाएगा। 84 साल की उम्र में आज भी उनमें गरीब मरीजों की सेवा का जज्बा कायम है। उन्होंने वर्ष 1984 में गरीब मरीजों की सेवा के लिए फिर मसूरी रोड पर स्थित जंगलों के बीच पहाड़ी पर कुछ जगह ली। वहां 500 पौधे रोपे और इस जगह को ‘जंगल मंगल’ नाम देकर वहां मरीजों के रहने के लिए भी कमरे बनाए। इसके साथ ही हेल्पिंग हैंड संस्था की स्थापना की और कई साल तक गरीब मरीजों की मुफ्त प्लास्टिक सर्जरी की। वर्ष 2006 में अमेरिका की संस्था को उत्तराखंड के गरीब मरीजों की मदद के लिए राजी किया। तब से अमेरिका के प्लास्टिक सर्जनों की टीम हर साल दो बार अत्याधुनिक उपकरणों के साथ सर्जरी के लिए देहरादून आती है। डॉ. एरन बताते हैं कि वह खुद भी मरीजों की प्लास्टिक सर्जरी करते हैं। जिन्हें उच्चस्तरीय सर्जरी की जरूरत होती है, उनकी सूची तैयार की जाती है। अमेरिका से अत्याधुनिक उपकरणों के साथ आए डॉक्टर उनकी सर्जरी करते हैं। उन्होंने बताया कि अभी भी उनके पास 10 हजार ऐसे मरीजों की वेटिंग हैं, जिनकी निशुल्क प्लास्टिक सर्जरी होनी है। गरीब मरीजों और परिजनों के रहने की निशुल्क व्यवस्था वह जंगल मंगल स्थित कमरों में करते हैं।
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