देहरादून: मुजफ्फरनगर कांड की बरसी पर आंदोलनकारियों ने धिक्कार और काला दिवस मनाया। साथ ही आरोपितों को सजा देने की मांग कर धरना दिया। आंदोलनकरियों ने हर साल की तरह इस बार भी बलिदानियों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धाजंलि दी।
गौरतलब है कि, 02 अक्तूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर उत्तराखंड से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों को पुलिस ने रोक दिया था। तत्कालीन समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश सरकार किसी भी कीमत पर आंदोलनकारियों को दिल्ली नहीं जाने देना चाहती थी। इस दौरान यूपी पुलिस ने आंदोलकारियों पर फायरिंग कर दी थे, जिसमे कई आंदोलनकारी शहीद हो गये और कई घायल हुए। इतना ही नहीं महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म की शर्मनाक घटना भी हुई। इसका आरोप पुलिसकर्मियों पर लगा था। वह मंजर आज भी दिल को दहला देना वाला है। तब रामपुर तिराहा कांड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बना था।
तब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। मामला गरमाया तो सीबीआई को पूरे मामले की जांच सौंपी गई। कई मुकदमे दर्ज किए गए। कुछ मामलों में अफसरों के खिलाफ मुकदमों में यूपी सरकार ने अनुमति देने से मना कर दिया था, कुछ अधिकारीयों की मौत के कारण कुछ मुकदमे खुद ही समाप्त हो गए। लेकिन रामपुर तिराहा कांड के आरोपी अफसरों को सजा दिलाने के लिए 26 साल से चल रही कानूनी लड़ाई किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। उत्तराखंड बन्ने के 20 साल बाद आज भी उत्तराखंड की तमाम जनता और शहीदों के परिवार न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
आन्दोलनकारियों का कहना है कि, इस शर्मनाक घटना के दोषियो पर कोई उचित कारवाही करने के बजाय उन्हें पदोन्नति दी गयी। यह बहुत बड़ा कलंक है। जब तक दोषियों को सजा नहीं मिल जाती, तब तक एक-एक उतराखंडी का सपना अधूरा सा रहेगा।
इस दौरान राज्य आन्दोलनकारी उमेश रावत, खुशियाँ सिह बिष्ट, देवसिह रावत, मोहनसिंह रावत, सुरेशानंद वसलियाल, बृजमोहन सेमवाल, अनिल पंत, मनमोहन शाह ठाकुर, किशोर सिह, विनोद नेगी, संजय नौटियाल, भरत रावत, द्वारका चमोली, पंकज पैन्यूली, प्रताप थलवाल, कुशलानन्द मैथानी, शिवसिंह रावत, ईंजिनियर चन्द्रा, हुकम सिह कण्डारी समेत कई आन्दोलनकारी मौजूद रहे।