देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड (Devasthanam Board) पर बड़ा फैसला लेते हुए त्रिवेंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया। सीएम धामी ने देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का एलान किया। इसी के साथ उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को लेकर तीर्थपुरोहितों की लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी हो गई है। देवस्थानम बोर्ड पर गठित उच्च स्तरीय समिति एवं मंत्रिमंडलीय उप समिति की रिपोर्ट के बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है।
गौरतलब है कि, दो साल पहले त्रिवेंद्र सरकार के समय चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड अस्तित्व में आया था। तीर्थ पुरोहितों, हकहकूकधारियों के विरोध और कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बोर्ड को मुद्दा बनाने से सरकार पर दबाव था। देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम और बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों के विरोध के मद्देनजर उनकी शंकाओं के समाधान के लिए सरकार ने राज्य सभा के पूर्व सदस्य मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की थी।
बीते रोज सोमवार को समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंपी। सीएम धामी ने समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मंत्रिमंडलीय उपसमिति गठित की। समिति के अन्य सदस्यों में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल व स्वामी यतीश्वरानंद शामिल किए गए। उपसमिति को दो दिन के भीतर संस्तुति सहित परीक्षण रिपोर्ट देने को कहा गया था। इसके बाद आज सीएम ने देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का एलान कर दिया।
बता दें कि, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वर्ष 2019 में श्राइन बोर्ड की तर्ज पर चारधाम देवस्थानम बोर्ड बनाने का फैसला लिया। तीर्थ पुरोहितों के विरोध के बावजूद सरकार ने सदन से विधेयक पारित कर अधिनियम बनाया। चारधामों के तीर्थ पुरोहित व हकहकूकधारी आंदोलन पर उतर आए, लेकिन त्रिवेंद्र सरकार अपने फैसले पर अडिग रही। सरकार का तर्क था कि बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री धाम समेत 51 मंदिर बोर्ड के अधीन आने से यात्री सुविधाओं के लिए अवस्थापना विकास होगा।
बोर्ड भंग करने पर तीर्थ पुरोहितों के पक्ष में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समर्थन कर रही थी। यही नहीं कांग्रेस व आप दोनों पार्टियों ने सत्ता में आने पर बोर्ड को भंग करने का एलान कर दिया था। वहीं चुनाव से पहले भाजपा सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठानी चाहती, जिससे विपक्षी दलों के लिए चुनावी मुद्दा मिल सके। अब उत्तराखंड के शीतकालीन सत्र में एक्ट को भी रद्द किया जा सकता है।